स्वाती सिंह
-देश में 7 करोड़ से ज्यादा आदिवासी बीमारी से ग्रसित
-भारत में 6 दशक से पनप रही ये बीमारी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार देश के लोगों की सेहत के प्रति गंभीर है। सरकार ने गरीबों को मुफ्त इलाज मुहैया कराने के साथ देश से कई गंभीर बीमारियों को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया है। इसमें एक बेहद घातक बीमारी ‘सिकल सेल एनीमिया’ है। यह बीमारी विशेषकर आदिवासी समाज के लोगों में देखने को मिलती है। देश में 7 करोड़ से ज्यादा आदिवासी इससे ग्रसित हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार को अपनी चपेट में लेने वाली इस घातक बीमारी के खात्मे के लिए अब सरकार ने कमर कस ली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की आजादी की 100वीं वर्षगांठ यानी 2047 तक एक मिशन मोड में अभियान चलाकर सिकल सेल एनीमिया से आदिवासियों और देश को मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया है।
नासूर बन जाती है जिंदगी
दरअसल, सिकल सेल एनिमिया एक ऐसी बीमारी है, जिसकी चपेट में आने से जिंदगी नासूर बन जाती है। उंगलियों की लंबाई में अंतर, हड्डियों में दर्द, अस्थि रोग, बार-बार पीलिया होना, लीवर पर सूजन, पित्ताशय में पथरी और थकान जैसे लक्षण पाए जाते हैं।
17 राज्यों में 7 करोड़ आदिवासी बीमारी का शिकार
इस बीमारी ने देश के 17 राज्यों में रहने वाले लगभग 7 करोड़ से अधिक आदिवासी आबादी को अपना शिकार बना रखा है। मुख्य रूप से ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में यह बीमारी जड़े जमाए हुए है। हाल ही में मध्य प्रदेश से राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बीमारी को 2047 तक खत्म करने का लक्ष्य रखा है।
आदिवासी जनजातियों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा
सिकल सेल रोग एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती है। यह रोग आदिवासी जनजातियों के भविष्य और अस्तित्व के सामने बहुत बड़ा खतरा है। इसलिए इसे रोकने के लिए केंद्रीय बजट 2023-24 में राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन की घोषणा की गई थी। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 01 जुलाई 2023 को मध्य प्रदेश में एक पोर्टल का अनावरण कर राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन 2047 की शुरुआत की थी।
मिशन का उद्देश्य
सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन का उद्देश्य विशेष रूप से आदिवासी आबादी के बीच इस बीमारी को लेकर जागरूक करना है। यह मिशन देश के 17 राज्यों में चलाया जाएगा। इसमें 13 राज्य इस बीमारी के अधिक प्रसार वाले क्षेत्र में आते हैं। वहीं, बिहार सहित असम, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश में इसका आंशिक प्रसार देखा गया है।
क्या है सिकल सेल एनीमिया?
सिकल सेल एनीमिया खून से संबंधित बीमारी है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है। यह बीमारी माता-पिता से ही बच्चे में आती है। इस रोग के कारण लाल रक्त कोशिकाएं असामान्य हो जाती हैं और उनका आकार बदलने लगता है। इसकी वजह से खून की नसों में ब्लॉकेज होने लगता है। इस बीमारी के कारण शरीर में खून का बनना भी बंद हो जाता है। वहीं दूसरी ओर शरीर में खून की कमी होने से शरीर के कई महत्वपूर्ण अंग खराब हो जाते हैं।
अचानक हो जाती है मौत!
इस बीमारी में मौत की वजह संक्रमण, दर्द का बार-बार उठना, एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम और स्ट्रोक आदि रहते हैं। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की मौत अचानक हो सकती है। पिछले 6 दशकों से यह बीमारी भारत में पनप रही है।
आदिवासियों के सर्वांगीण विकास को प्रतिबद्ध मोदी सरकार
मोदी सरकार आदिवासियों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रतिबद्ध है। इस सरकार में वनबंधु योजना के जरिए जनजातीय आबादी को पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों से जोड़ा है। आज देश में वनक्षेत्र भी बढ़ रहे हैं, वन-संपदा भी सुरक्षित की जा रही है और आदिवासी क्षेत्र डिजिटल इंडिया से भी जुड़ रहे हैं। पारंपरिक कौशल के साथ-साथ आदिवासी युवाओं को आधुनिक शिक्षा के भी अवसर मिले, इसके लिए लगातार ‘एकलव्य आवासीय विद्यालय’ भी खोले जा रहे हैं।’
प्रधानमंत्री ने आदिवासी क्रांतिकारियों को दिया सम्मान
कई आदिवासियों ने देश की आजादी के लिए काम करते हुए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए लेकिन कांग्रेस की सरकार ने कभी भी उन्हें सम्मान नहीं दिलाया। प्रधानमंत्री मोदी ने आदिवासी क्रांतिकारियों का सम्मान करते हुए उनके लिए स्मारक बनाएं और 15 नवंबर बिरसा मुंडा की जयंती पर देश के इतिहास और संस्कृति में जनजातीय समुदायों के योगदान को याद करने के लिए जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया। कांग्रेस सरकार में आदिवासी गरीब इलाज के अभाव में दम तोड़ देते थे लेकिन मोदी सरकार ने उनके दर्द को समझा और आयुष्मान योजना में 5 लाख तक का इलाज मुफ्त सुनिश्चित किया।
सिर्फ भाजपा ने की आदिवासी समाज की चिंता
कांग्रेस देश में सबसे अधिक सत्ता में रही लेकिन उसने कभी भी गरीब आदिवासियों की चिंता नहीं की। अटल जी की सरकार ने सबसे पहले आदिवासियों के लिए अलग मंत्रालय बनाने का काम किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद पर आसीन कर देश के आदिवासियों का गौरव बढ़ाने का काम किया है। मोदी सरकार आदिवासी समाज के विकास के लिए पूरी तरह समर्पित है।
आदिवासियों ने स्वराज की भावना को मुख्यधारा तक पहुंचाया
जंगल और बीहड़ में रहने वाले आदिवासियों ने न सिर्फ स्वराज के लिए दर्जनों लड़ाइयां लड़ीं, बल्कि स्वराज की भावना को मुख्यधारा तक पहुंचाया भी। यह भी सत्य है कि भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह आदिवासियों की धरती पर हुआ। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में ज्ञात 1857 की क्रांति से लगभग एक शताब्दी पूर्व जंगल महाल के क्षेत्र में चुआड़ विद्रोह (1767-1805), पहाड़िया विद्रोह (1766), चेरो विद्रोह (1771-1819), तमाड़ विद्रोह (1782-98) के नायकों और तिलका मांझी (विद्रोह शुरू-1784) जैसे लोगों ने अपनी माटी से अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था। इन विद्रोहों का उद्देश्य कोई सामुदायिक मांग या किसी बात से आपत्ति नहीं, बल्कि स्वराज था। लगभग डेढ़ सौ सालों बाद इसी स्वराज की भावना देशभर में फैली और देश आजाद हुआ। आदिवासी समाज के संघर्ष और बलिदान को आजादी के बाद लिखे गये इतिहास में जो जगह मिलनी चाहिए वो नहीं मिली और आज देश दशकों की उस भूल को सुधार रहा है। आदिवासी समाज की सेवा के लिए आज मोदी सरकार स्पष्ट नीतियों के साथ काम कर रही है।
(लेखिका- पूर्व मंत्री और भाजपा की वरिष्ठ नेता हैं।)