स्वाती सिंह

यूं तो दुनिया की सबसे बड़ी और खतरनाक बीमारी यानि कैंसर पुरुष या महिला किसी को भी अपनी चपेट में ले सकती है। लेकिन कुछ कैंसर ऐसे हैं, जो खासतौर पर महिलाओं को अधिक परेशान करते हैं। आमतौर पर महिलाओं में कैंसर होने की बात आते ही ब्रेस्ट कैंसर का ही अनुमान लगाया जाता है लेकिन असल में भारत में ब्रेस्ट कैंसर से भी ज्यादा घातक और ज्यादा तेजी से फैलने वाला सर्वाइकल कैंसर है।

सर्वाइकल कैंसर भारत में दूसरा सबसे अधिक प्रचलित कैंसर है और बड़े पैमाने पर रोकथाम योग्य होने के बावजूद दुनिया में सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतों में से लगभग एक-चौथाई के लिए जिम्मेदार है।

यह असल में महिलाओं के जननांग से जुड़ा कैंसर है। आम बोलचाल की भाषा में इसे बच्चेदानी (गर्भाशय) के मुंह का कैंसर भी कहते हैं, जो खासतौर पर नई उम्र की लड़कियों और कम उम्र की महिलाओं को अपना शिकार बना रहा है। इसके लक्षण भी ऐसे होते हैं कि शुरुआत में समझ ही नहीं आते और महिलाएं सामान्य चीजें समझकर इन लक्षणों या संकेतों पर गौर नहीं करतीं और बीमारी बढ़ जाती है। सर्वाइकल कैंसर, ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) के विभिन्न वैरिएंट्स के कारण होता है। इसके अलावा माहवारी के दौरान सैनिटरी पैड की जगह कपड़े का इस्तेमाल करने के कारण भी सर्वाइकल कैंसर से महिलाएं पीड़ित हो रही हैं।

बालिकाओं का टीकाकरण
एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल सर्वाइकल कैंसर के 80 हजार से ज्यादा मामले सामने आते हैं, जबकि 35 हजार महिलाओं की इससे मौत हो जाती है। वहीं, राहत की बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने महिलाओं में होने वाले सर्वाइकल कैंसर के रोकथाम की तैयारी कर ली है। सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ बनी पहली स्वदेशी वैक्सीन बाजार में आने वाली है। 9 से 14 साल की लड़कियों को ये मुफ्त में लगाई जाएगी।
सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए भारत में पहली स्वदेशी वैक्सीन ‘सर्ववैक’ लांच हो चुकी है। विशेषज्ञों का दावा है कि वैक्सीन सर्वाइकल कैंसर के मामलों में 90 फीसदी तक कमी ला सकती है। इस वैक्सीन को केंद्र सरकार के टीकाकरण अभियान में शामिल किया गया है। टीकाकरण अभियान में ‘सर्ववैक’ के शामिल होने की वजह से ये वैक्सीन 9 से 14 साल की लड़कियों को फ्री में दी जाएगी।

स्कूलों में लगाई जाएगी वैक्सीन
सरकार जल्द ही स्कूली स्तर पर सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत करेगी। किशोरियों को स्कूल में ही सर्ववैक वैक्सीन के टीके लगाए जाएंगे और जो किशोरी स्कूल में यह नहीं लगवा पाती हैं उनको टीका स्वास्थ्य सुविधा केंद्र पर इसको उपलब्ध करवाया जाएगा।
सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन ‘सर्ववैक’ सीरम इंस्टीट्यूट, डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के बीच सहयोग से बनाई गई है। इस वैक्सीन के उत्पादन में कंपनी को करीब छह से सात साल का समय लगा है। सीरम इंस्टीट्यूट को भारतीय औषधि महानियंत्रक से वर्ष 2022 में सर्वाइकल कैंसर का टीका विकसित करने के लिए बाजार प्राधिकरण प्राप्त हुआ था। सीरम इंस्टीट्यूट के अनुसार, इस साल से ये वैक्सीन बाजार में आ जाएगी।

टीके की दो डोज
सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के कई तरीके हैं, लेकिन दो टीकों की उपलब्धता के साथ, टीकाकरण द्वारा रोकथाम सबसे प्रभावी विकल्प है। सरकार ने किशोरियों के लिए ‘सर्ववैक’ वैक्सीन जरूरी बताया है।

समय से पता चलने पर सर्वाइकल कैंसर का इलाज संभव
सर्वाइकल कैंसर के समय पर पता चलने पर रोका जा सकता है और उसका इलाज संभव है। बताया जाता है कि अधिकांश सर्वाइकल कैंसर ह्यूमन पैपिलोमा वायरस से जुड़े होते हैं और सर्वाइकल कैंसर के अधिकांश मामलों को एचपीवी वैक्सीन से रोका जा सकता है। अगर वैक्सीन को लड़कियों या महिलाओं को वायरस के संपर्क में आने से पहले दिया जाता है तो इसको रोका जा सकता है।

आत्मनिर्भरता की ओर भारत
भारत लगातार स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। इसी कड़ी में सर्ववैक सर्वाइकल कैंसर के लिए देश की पहली मेड इन इंडिया यानि स्वदेशी वैक्सीन है। सस्ते और लागत प्रभावी टीका निर्माण भारत को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत की सोच के नजदीक ले जाता है। इससे पहले भी भारत ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए न केवल टीकों का निर्माण किया, बल्कि भारत ने वैक्सीन मैत्री के तहत अपने पड़ोसियों और मित्र देशों के साथ ही अल्पविकसित, अविकसित देशों को वैक्सीन भी प्रदान की।

5.66 करोड़ महिलाओं की स्क्रीनिंग
सर्वाइकल कैंसर से निपटने के लिए केन्द्र सरकार एक बड़ी मुहिम के तहत काम कर रही है। भारत में सरकारी हेल्थ केयर सिस्टम में विभिन्न स्तरों पर सर्वाइकल कैंसर का निदान और उपचार किया जा रहा है। केन्द्र सरकार ने हाल के वर्षों में इस कैंसर की चुनौती से अधिक प्रभावी ढंग से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं।
आयुष्मान भारत योजना के तहत करोड़ों महिलाओं का कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट हुआ है। इसमें सर्वाइकल कैंसर के लिए कुल 5.66 करोड़ से अधिक महिलाओं की स्क्रीनिंग की गई है। कैंसर का इलाज आयुष्मान भारत योजना का एक प्रमुख अंग है। इसके तहत हर साल स्वास्थ्य बीमा कवर 5 लाख रुपये प्रति परिवार को अस्पताल में दाखिल होने पर मिलते हैं।
आयुष्मान भारत योजना के तहत रजिस्टर्ड अस्पतालों में कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के साथ-साथ सर्जिकल ऑंकोलॉजी को भी कैंसर के इलाज में शामिल कर लिया गया है। प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना में कैंसर के इलाज की सुविधाओं को सभी मेडिकल कॉलेजों में शुरु किया जा चुका है। साथ ही इसी प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत ऑंकोलॉजी को सभी नए एम्स में शामिल करने का फैसला लिया जा चुका है।

माहवारी में गंदा कपड़ा दे रहा सर्वाइकल कैंसर
माहवारी के दौरान गंदा कपड़ा इस्तेमाल करने के कारण भी सर्वाइकल कैंसर से महिलाएं पीड़ित हो रही हैं। ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी ज्यादा चिंताजनक है। यहां पर ज्यादातर महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं है। वे सर्वाइकल कैंसर के खतरों से अनजान रहती हैं।
दूसरी तरफ विडंबना यह भी है कि महीने के ‘उन दिनों’ के बारे में लोग न तो खुलकर बात कर पाते हैं और न ही इसके बारे में सही जगह से जानकारी जुटाने की कोशिश करते हैं। महिलाएं माहवारी के दौरान जिस कपड़े को प्रयोग में लाती हैं, इसकी वजह से उन्हें सर्वाइकल कैंसर के अलावा कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
वॉटर एड की एक रिपोर्ट के अनुसार पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई और स्वच्छता को लेकर सतर्कता की कमी महिलाओं की मृत्यु का कारण है और यही भारत में महिलाओं की मौत का पांचवां सबसे बड़ा कारण भी है।
माहवारी के दौरान गंदे कपड़े इस्तेमाल करना महिलाओं के लिए कितना खतरनाक है, इस पर स्त्री रोग विशेषज्ञ कहतीं हैं कि घर में रखे पुराने गंदे कपड़े का इस्तेमाल करना भारी पड़ सकता है। इससे संक्रमण का खतरा रहता है। महिलाओं को माहवारी के दौरान सैनिटरी पैड इस्तेमाल करना चाहिए। 4 से 6 घंटे के अंतराल पर सैनिटरी पैड बदलना चाहिए। साथ ही उन्हें अपने आस-पास के जगहों जैसे बिस्तर की सफाई का ध्यान रखना चाहिए। माहवारी के समय स्वच्छता का ख्याल नहीं रखने पर महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर, सर्विक्स इंफेक्शन, फैलोपियन ट्यूब का इंफेक्शन होने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।

जागरूकता का अभाव
एक रिसर्च की मानें तो भारत में ज्यादातर लड़कियों को माहवारी आने से पहले इसके बारे में कुछ जानकारी नहीं होती है। अभी भी हमारे देश में बड़ी संख्या में लड़कियां माहवारी के समय कपड़ा, टाट, रेत या राख आदि का इस्तेमाल करती हैं, जो स्वास्थ्य और स्वच्छता की दृष्टि से ठीक नहीं है। माहवारी के समय सैनिटरी पैड नहीं इस्तेमाल करना महिलाओं के बीमार होने और अपनी जान गंवाने का एक प्रमुख कारण है।

1 रूपये में सैनिटरी नैपकीन
सरकार ने जन औषधि केन्द्रों में सैनेटरी नैपकीन उपलब्ध कराए हैं। इन नैपकीन की कीमत बाजार मूल्य से बेहद ही कम रखी गई है। जन औषधि केन्द्रों पर ये नैपकिन मात्र 1 रुपये में मिल रहे हैं।

स्वाती फाउंडेशन मुफ्त सैनिटरी पैड करा रहा मुहैया
स्वास्थ्य जागरूकता और महिलाओं को माहवारी के दौरान गंदे कपड़े के इस्तेमाल से जो समस्या हो सकती है, उसे ध्यान में रखते हुए ‘स्वाती फाउंडेशन’ द्वारा सैनिटरी नैपकिन मुफ्त में मुहैया करवाए जा रहे हैं। इसके लिए स्वाती फाउंडेशन की ओर से लखनऊ में सिरोज हैंगआउट कैफे समेत कई प्रमुख जगहों पर सेनटरी पैड्स डिस्पेंसर मशीनें लगाई गईं हैं। इन मशीनों से महिलाओं को निःशुल्क पैड्स मिलते हैं। स्वाती फाउंडेशन लगातार महिलाओं के स्वास्थ की बेहतरी की लिए कई अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रहा है।

(लेखिका, पूर्व मंत्री और भाजपा की वरिष्ठ नेता हैं।)