स्वाती सिंह
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इतिहास के पन्नों में एक और पन्ना जोड़ है। यह पन्ना है पहली बार और वैश्विक अर्थव्यवस्था में करीब 80 फीसदी से ज्यादा प्रतिनिधित्व करने वाले जी-20 की अध्यक्षता करने का। भारत की अध्यक्षता में विश्वमंथन का सबसे बड़ा मंच जी-20 इतिहास का सबसे महत्वाकांक्षी व सफल सम्मेलन साबित हुआ है।
देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा काम किया जिसे दुनिया का कोई नेता नहीं कर सका। उन्होंने संयुक्त घोषणा पत्र पर दुनिया के दिग्गजों के बीच ना सिर्फ सहमति बनवाई, बल्कि दुनिया की आशाओं को नए पंख भी दिए और युद्ध की बजाय शांति-सौहार्द्र का संदेश दिया। भारत ने जी-20 से जहां पूरी दुनिया को अपनी ताकत का एहसास कराया। वहीं, दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में दुनिया भर के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘निर्णायक नेतृत्व’, और ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज उठाने के लिए उनकी सराहना की।
पिछले जी-20 की तुलना में इस बार सबसे ज्यादा काम
इस बार समिट में पिछले जी-20 की तुलना में सबसे ज्यादा काम हुआ है। भारत में हुए समिट के पहले दिन कुल 73 मुद्दों पर चर्चा के बाद सहमति बनी, जबकि पिछले साल इसी समिट में सिर्फ 27 मुद्दों पर ही सहमति बन पाई थी। 2021 इटली (36), 2020 सऊदी अरब (22), 2019 जापान (13), 2018 अर्जेंटीना (12) और 2017 में जब जर्मनी में जी-20 का समिट हुआ था, तब सिर्फ (8) मुद्दों पर ही चर्चा के बाद सहमति बनी थी। लेकिन भारत ने इस बार के समिट में सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 73 मुद्दों पर चर्चा की और इस पर सभी देशों के राष्ट्र अध्यक्षों और नेताओं के बीच इन पर सहमति भी बना ली।
अफ्रीकन यूनियन बना स्थायी सदस्य
इस बार का जी-20 समिट इसलिए भी ऐतिहासिक और खास बन गया है, क्योंकि अब ये जी-20 से जी-21 हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर अफ्रीकन यूनियन यानी अफ्रीकी देशों का संघ, जी-20 का स्थाई सदस्य बन गया है। अफ्रीकी देश इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी का दिलखोल कर धन्यवाद दे रहे हैं।
जी-20 के पहले दिन जब प्रधानमंत्री मोदी ने ये ऐलान किया कि अफ्रीकन यूनियन को जी-20 का स्थाई सदस्य बनाने पर सहमति बन गई है और इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इस संघ के अध्यक्ष, जो कि अफ्रीकी देश ‘कॉमरॉस’ के राष्ट्रपति भी हैं, उन्हें बधाई देने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो उन्होंने प्रधानमंत्री से हाथ मिलाने के बजाय उन्हें सीधे गले लगा लिया। इस कदम को भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत माना जा रहा है।
पीएम मोदी ने पूरी की गारंटी
पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में हुए जी-20 समिट के दौरान जब प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात अफ्रीकी देश सेनेगल के राष्ट्रपति से हुई थी। तब राष्ट्रपति ने कहा था कि उन्हें नहीं लगता कि अफ्रीकन यूनियन को इस संगठन में सदस्यता मिल पाएगी। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे कहा था कि ऐसा होकर रहेगा और ये मोदी की गारंटी है और अब ऐसा ही हुआ।
अफ्रीकी यूनियन को भी मिला बड़ा मंच
अफ्रीकी यूनियन 55 देशों का समूह है, जिसमें दुनिया की लगभग 14 फीसद आबादी रहती है। हालांकि इनमें से ज्यादातर अफ्रीकी देश गरीब हैं, इसलिए विश्व जीडीपी में इन देशों की हिस्सेदारी सिर्फ तीन फीसद है। लेकिन अब जी-20 का स्थाई सदस्य बनने के बाद अफ्रीका के गरीब देशों को एक ऐसा मंच मिलेगा, जिसमें वो भी अमेरिका और यूरोप के देशों के साथ एक मंच पर बराबरी के साथ बैठ कर अपनी मांगों को लेकर चर्चा कर पाएंगे। इससे अफ्रीकी देशों को कई रूप से लाभ पहुंचेगा और इसके लिए वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों को भी कभी नहीं भूलेंगे। वहीं दूसरी तरफ भारत को भी इससे काफी फायदा होगा।
यह भारत का समय है
कुछ वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारत न सिर्फ कहता आया है कि उसका समय आ गया है, बल्कि तमाम विकासशील देशों के हितों की आवाज के रूप में भी उभरा है। उसका क्लाइमेक्स इस सम्मेलन में दिखा। साउथ अफ्रीका-ब्राजील-इंडोनेशिया जैसे देश तमाम विकसित देशों के सामने न सिर्फ मजबूत बनकर उभरे, बल्कि संदेश देने में भी सफल रहे कि अब कोई अजेंडा एकतरफा तय नहीं होगा। भारत ने बहुत ही विनम्रता से विकसित देशों को उनके लिए एकतरफा फैसला नहीं लेने का गंभीर संदेश भी दे दिया।
बायो फ्यूल अलायंस की घोषणा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी20 शिखर सम्मेलन के पहले दिन ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस (जीबीए) की घोषणा की। भारत, अमेरिका, इटली, ब्राजील और संयुक्त अरब अमीरात समेत जी-20 के सात देश और चार आमंत्रित देश ने मिलकर इस बायो फ्यूल अलायंस की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य है कि दुनियाभर में कार्बन आधरित ईंधन की खपत को कम करना और जैव ईंधन जैसे इथेनॉल की खपत को बढ़ाना। अभी दुनिया में बायोफ्यूल का बाजार 100 अरब डॉलर का है। अंतरराष्ट्रीय इनर्जी एजेंसी के मुताबिक, यह वर्ष 2050 तक 500-800 अरब डॉलर का बाजार होगा। भारत के लिए इसमें अपार संभावनाएं हैं।
ग्लोबल साउथ को मान्यता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ वर्षों से ग्लोबल साउथ यानी विकासशील और अल्प विकसित देशों को लगातार प्रमोट किया है। कुछ मौकों पर उनकी इस बात को अति महत्वाकांक्षा भी कहा गया। यह भी कहा गया कि अभी ग्लोबल साउथ का समय आने में समय लगेगा। लेकिन भारत में जी-20 सम्मेलन में ही साबित हो गया कि ग्लोबल साउथ का वक्त आ गया है। पूरी समिट में सैकड़ों बार उन पक्षों ने भी इस शब्द को स्वीकार किया, जिन्हें पहले इस पर संदेह था। इस जी—20 सम्मेलन का यही सबसे बड़ा हासिल रहा। इसी क्रम में भारत स्वाभाविक रूप से ग्लोबल साउथ का लीडर बनकर भी उभरा।
मध्यस्थ की हैसियत मिली
जबसे रूस-यूक्रेन युद्ध हुआ, भारत ने इनमें से किसी एक का पक्ष लेने के बजाय खुद की मध्यस्थ की हैसियत बनाए रखी। लेकिन इस पर कई बार गंभीर सवाल भी उठे। साथ ही, किसी बड़े मंच पर ऐसा मौका नहीं आया था, जहां भारत अपने इस रुख को साबित कर सके। लेकिन जी-20 समूह में, जहां एक ओर अमेरिका और यूरोपीय देश हैं, दूसरी ओर चीन व रूस जैसे देश हैं, वहां भारत ने न सिर्फ संतुलन बनाया, बल्कि सम्मेलन की समाप्ति के बाद दोनों धुर विरोधी पक्षों ने भारत की भूमिका को आत्मसात भी किया। इस सम्मेलन के बाद अब भारत स्वाभाविक मध्यस्थ के रूप में स्थापित हो सकता है
भारत की दुनिया में मोलभाव की क्षमता बढ़ी
शिखर सम्मेलन के बाद भारत की दुनिया में मोलभाव की क्षमता बढ़ेगी। भारत ऐसे चंद देशों में है, जो जी-20 का सदस्य होने के साथ ब्रिक्स का मेंबर भी है। क्वॉड का हिस्सा भी है। इसके अलावा, भारत कई अन्य ग्लोबल पहल का हिस्सा भी है। दिलचस्प बात है कि इसमें कई ऐसे समूह हैं, जो एक-दूसरे के विरोधी माने जाते हैं। इन सभी में भारत की सक्रिय हिस्सेदारी होने से अब भारत की तोल-मोल यानी मोलभाव क्षमता बढ़ सकती है। इसका लाभ बड़ी ग्लोबल डील में अपनी शर्तें मनवाने में मिल सकता है। जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध के समय भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदा।
नई दिल्ली लीडर्स घोषणा पत्र को मंजूरी
भारत को तब बड़ी सफलता हासिल हुई जब सदस्य देशों के बीच सहमति के साथ जी-20 ‘नई दिल्ली लीडर्स समिट डिक्लेरेशन’को अपनाया गया। 37 पन्नों के नई दिल्ली घोषणा पत्र में कहा गया कि हमारे पास बेहतर भविष्य बनाने का अवसर है, ऐसे हालात नहीं बनने चाहिए कि किसी भी देश को गरीबी से लड़ने और ग्रह के लिए लड़ने के बीच चयन करना पड़े। डिक्लेरेशन पर सभी सदस्य देशों ने भारत की सराहना की है।
नई दिल्ली घोषणा पत्र का इन चीजों पर फोकस
मजबूत-दीर्घकालीक-संतुलित और समावेशी विकास, सतत विकास लक्ष्यों पर आगे बढ़ने में तेजी लाना, दीर्घकालीक भविष्य के लिए हरित विकास समझौता,-21वीं सदी के लिए बहुपक्षीय संस्थाएं, बहुपक्षवाद को पुर्नजीवित करने पर जोर।
जी-20 के सदस्य देश
जी-20 के सदस्य देश समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किये, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल हैं। इस बाद अफ्रीकी संघ को जी-20 के स्थायी सदस्य के रूप में शामिल किया गया।